With Pipe And Flute
July 5, 2023Main Dharati Ka Phatna Dekh Raha Hoon
मैं धरती का फटना देख रहा हूँ
फिर मैं पुष्प वाटिका देख रहा हूँ
अंतराल का सार यही निकला है
सिया-राम को रोते देख रहा हूँ ।
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परिस्थिति विकट बनाई ऐसी कैकई ने
वचन निभाने को वे विवश होते जाते हैं
नरेश है भारी देखो आज पिता प्रेम पर
पुत्र को आदेश देकर दायित्व निभाते हैं
मन में पीड़ा शेष उसका निवारण कैसे ?
दशरथ केवल आज रोते बिलखाते हैं
प्राण पुत्र मोह से कुछ ऐसे जुड़े उनके
जो राम चले जाते हैं तो प्राण चले जाते हैं
रघुवर सब छल त्याग तुम्हरे पास आई
नयन के समुद्र को गगरी मत समझना
एक एक बूंद में समाहित है एक सृष्टि
नगर के जन जैसे नगरी मत समझना
स्वांसो पर राम लिख सेतुपथ पार किया
अपनी पंचवटी की डगरी मत समझना
मैं एक अभागन हूँ शरण हूँ लेने आई
दासी समझ लो प्रभु सबरी मत समझना
पद पद , धर धर , हर पथ पथ पर
काँटो को हटाके मैं तो , आई मोरे राम जी
डर कर , छल कर , हर छत , टप कर
घर को सुलाक़े मैं तो आई मोरे राम जी
नद जल ,भर कर , सब रस , चख कर
प्रेम को पिलाके मैं तो आई मोरे राम जी
जप तप , सब कर , घट तक , भर कर
राम को मिलाके मैं तो , आई मोरे राम जी
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